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सच्चा होना

एक बार एक छोटा लड़का था, पुखराज, जो एक किसान का बेटा था. पुखराज की एक बुरी आदत यह थी की वह कई बार अपने परिवार और दोस्तों से झूट बोला करता था. वह जंगल में बसे राक्षसों की कहानिया सुनाता था, या फिर वह नाटक करता था की खेतों में ज़हरीलें साप हैं, या फिर कैसे वह बहुत बीमार है जब की वह बिलकुल बीमार नहीं था.

उस छोटे लड़के का काम था की हर सुबह नज़दीक के पहाड़ों के जंगल के एक खुल्ले मैदान में, वह अपने पिताजी के मावेशी को घास चरने ले जाए. पुखराज को इस काम में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी क्योंकि उसे वे मावेशी बहुत नीरस लगते थे, और वह अनेक बार आशा करता था की काश उसकी ज़िन्दगी में और मज़ा हो, और उसकी ज़िन्दगी और रोमांचक हो. लेकिन मज़े और रोमांच की जगह, पुखराज अपने आप को हर दिन वही नीरस काम करते हुए पाता था, और इस बात ने उसे बहुत नाराज़ कर दिया था. और इसी नाराज़गी की वजह से, बदमाश पुखराज झूटी कहानिया बुन्नता था.

एक दिन, जब वह लड़का बहुत उब गया था अपनी मावेशी का ख्याल रख कर, उसने ठान ली की वह गाव वालों के साथ मज़ाक करेगा. "मैं नाटक करूँगा की मुझपर एक शेर ने वार किया है", पुखराज ने सोचा. और अचानक से, वह छोटा लड़का जोर जोर से चिल्लाने लगा..."बचाओ, बचाओ!" वह चिल्लाया, "मुझपर एक खूंखार शेर ने वार किया है!"

तुरंत, बहादुर गाव वाले पहाड़ी के उस खुल्ले मैदान की तरफ दौड़े ताकि वे छोटे पुखराज को शेर से बचा पाए. मगर जब वे वहाँ पहुंचे, वहाँ कोई शेर नहीं था, बस वह छोटा लड़का ज़मीन पर हस हस के लोट पोट हो गया था की कैसे उसने गाव वालों को उल्लू बनाया.

गाव वाले पुखराज से बहुत निराश थे और उन्होंने उसे चेतावनी दी की ऐसा मज़ाक सही नहीं. लेकिन वह बदमाश लड़का हसने में इतना मग्न था की उसने उनकी चेतावनी की तरफ ध्यान नहीं दिया.
कुछ समय बिता और ज़िन्दगी चलती गयी: पुखराज हर सुबह मावेशी को घास चरने जंगल ले जाता था और हर शाम को मावेशी को लेकर अपने पिताजी के खेतों में भोजन के पहले आ जाता था. लेकिन छोटा पुखराज बेचैन था, अभी भी नाराज था अपने नीरस काम और ज़िन्दगी को लेकर.  और इसलिए, एक शांत सुबह, उसने फिर गाव वालों के साथ वही मज़ाक करने की ठान ली.

एक बार जब वह जंगल के उस मैदान में आ पहुंचा, और जब उसने सोचा की वक्त सही था, वह जोर जोर से चिल्लाने लगा... "बचाओ, बचाओ!", वह बदमाश लड़का चिल्लाया, "मुझपर एक खूंखार शेर ने वार किया है! मुझे आ कर बचालो!"

गाव के किनारे के खेतों में काम करने वाले मर्द और औरतें पहाड़ी के मैदान की तरफ दौड़े, उस छोटे लड़के और मावेशी को उस खूंखार शेर से बचाने. लेकिन जब वे मैदान में पहुंचे, वहाँ कोई शेर नहीं था. एक बार फिर उन्होंने पुखराज को ज़मीन पर लोट पोट होते देखा. "तुम सब कितने अजीब लगते हो!" वह बदमाश लड़का बोला. "यहाँ कोई शेर नहीं है; मैं सिर्फ मज़ाक कर रहा था तुम्हारे साथ!"

गाव वाले पुखराज से बहुत नाराज़ थे, और उसके पिताजी को, अपने बेटे के बर्ताव के लिए सब से माफ़ी माँगनी पड़ी क्योंकि बहुत लोगों का मानना था की पुखराज को इस बर्ताव के लिए सजा मिलनी चाहिए.

"ऐसे झूट नहीं बोलने चाहिए", उसके पिताजी ने उसे चेतावनी दी. लेकिन वह छोटा लड़का हसने में मग्न था और उसने अपने पिताजी के कहने पर ध्यान नहीं दिया.

अगली सुबह, जब पुखराज एक लम्बे पेड़ की छाँव  में आराम कर रहा था, अपनी मावेशी को मैदान में घास चरते देखते हुए, उसने अपने पीछे पेड़ों के पत्तों की हलकी सी आवाज़ सुनी. जब वह छोटा लड़का मुडा, यह देखने के लिए की कौन वह आवाज़ कर रहा है, उसने अपने आप को एक बड़े शेर के बिलकुल आमने सामने पाया. उस शेर के नाख़ून बड़े थे और आँखें डरावनी थी और दांत बहुत तेज़ धार वाले थे! पुखराज जितनी जल्दी हो सके, वहाँ से गाव की तरफ भागा, मगर उस शेर ने उसका रास्ता रोका. "बचाओ, बचाओ!" वह चीखा, "मुझपर एक खूंखार शेर वार कर रहा है!"

लेकिन जब गाव वालों ने उसे मदद के लिए चीखते हुए सुना, वे पहाड़ी के उस मैदान की तरफ नहीं दौड़े.. इस बार नहीं. वे फिर से खेतों में अपने काम पर लग गए, जैसे की कुछ हुआ ही नहीं था. 

और इसलिए, बेचारा पुखराज, शेर के हाथों मारा गया क्योंकि उस दिन एक भी गाव वाले को विश्वास नहीं था की पुखराज सच बोल रहा था. उसने पहले इतनी बार झूट बोला था और गाव वालों के साथ मज़ाक किया था, की इस बार वे उसकी मदद के पुकार  पर विश्वास नहीं कर पाए. अगर आप झूट बोलते हो, तो ऐसा ही होता है.

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