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मई 19, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :----

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ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :---- भारत में एक ऐसा तीर्थ है जहां पर पिंडदान करने का फल गया से आठ गुणा आधिक प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यहां पर भोलेनाथ को ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली थी। यह स्थान उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित है। जिसे ब्रह्मकपाल के नाम से जाना जाता है। इसके विषय में मान्यता है कि यहां पर पितरों का पिंडदान करने से उन्हें नर्क से मुक्ति मिलती है। स्कंद पुराण में भी ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुणा अधिक फलदायी पितर कारक तीर्थ कहा गया है। कहा जाता है कि सृष्टि उत्पति के समय भगवान ब्रह्मा मां सरस्वति के स्वरूप पर मोहित हो गए थे। भोलेनाथ ने क्रोधित होकर उनका एक सिर अपने त्रिशूल से काट दिया था। ब्रह्म हत्या के कारण उनका सिर त्रिशूल पर ही चिपका रह गया। इस पाप से मुक्ति हेतु भोलेनाथ पृथ्वी लोक गए। बद्रीनाथ से 500 मीटर की दूरी पर उनके त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर धरती पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव ने इस स्थान को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर श्राद्ध करेगा, उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिलेगी। उनकी कई पीढ़ियों के पितरों को भी मुक्ति...

ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :----

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ब्रम्हकपाल में पिंडदान का फल :---- भारत में एक ऐसा तीर्थ है जहां पर पिंडदान करने का फल गया से आठ गुणा आधिक प्राप्त होता है। कहा जाता है कि यहां पर भोलेनाथ को ब्रह्महत्या से मुक्ति मिली थी। यह स्थान उत्तराखंड के बदरीनाथ के पास स्थित है। जिसे ब्रह्मकपाल के नाम से जाना जाता है। इसके विषय में मान्यता है कि यहां पर पितरों का पिंडदान करने से उन्हें नर्क से मुक्ति मिलती है। स्कंद पुराण में भी ब्रह्मकपाल को गया से आठ गुणा अधिक फलदायी पितर कारक तीर्थ कहा गया है। कहा जाता है कि सृष्टि उत्पति के समय भगवान ब्रह्मा मां सरस्वति के स्वरूप पर मोहित हो गए थे। भोलेनाथ ने क्रोधित होकर उनका एक सिर अपने त्रिशूल से काट दिया था। ब्रह्म हत्या के कारण उनका सिर त्रिशूल पर ही चिपका रह गया। इस पाप से मुक्ति हेतु भोलेनाथ पृथ्वी लोक गए। बद्रीनाथ से 500 मीटर की दूरी पर उनके त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर धरती पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्मकपाल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान शिव ने इस स्थान को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर श्राद्ध करेगा, उसे प्रेत योनि से मुक्ति मिलेगी। उनकी कई पीढ़ियों के पितरों को भी मुक्ति...

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🌹🙏🌹🌹🙏🌹🌹🙏 *50 वर्ष से अधिक उम्र वाले इस सन्देश को सावधानीपूर्वक पढ़ें, क्योंकि यह उनके आने वाले जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।*👏👏👏 *सुखमय वृद्धावस्था के लिए.....* *1* 🏠अपने स्वयं के स्थायी स्थान पर रहें ताकि स्वतंत्र जीवन bे का आनंद ले सकें! *2* अपना बैंक बेलेंस और भौतिक अमूल्य संपत्ति सदा अपने पास रखें! 💵 *3* अपने बच्चों के इस वादे पर निर्भर ना रहें कि वो वृद्धावस्था में आपकी सेवा करेंगे, क्योंकि समय बदलने के साथ उनकी प्राथमिकता भी बदल जाती है! 👬 *4*👥 उन लोगों को अपने मित्र समूह में शामिल करें जो आपके जीवन को प्रसन्न देखना चाहते हैं! 🙏 *5* 🙌किसी के साथ अपनी तुलना ना करें और ना ही किसी से कोई उम्मीद रखें! *6* 👫अपनी संतानों के जीवन में दखल अन्दाजी ना करें, उन्हें अपने तरीके से अपना जीवन जीने दें और आप अपने तरीके से अपना जीवन जीएँ! *7* 👳अपनी वृद्धावस्था को आधार बनाकर किसी से सेवा करवाने, सम्मान पाने का प्रयास ना करें। *8* 🖐लोगों की बातें सुनें लेकिन अपने स्वतंत्र विचारों के आधार पर निर्णय लें। *9*👏 प्रार्थना करें लेकिन भीख ना मांगे, यहाँ तक कि भगवान से भी नहीं। ...

भक्त धन्ना जाट

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भक्त धन्ना जाट धन्ना जाट एक ग्रामीण किसान का सीधा-सादा लड़का था। गाँव में आये हुए किसी पण्डित से भागवत की कथा सुनी थी। पण्डित जब सप्ताह पूरी करके, गाँव से दक्षिणा, माल-सामग्री लेकर घोड़े पर रवाना हो रहे थे तब धन्ना जाट ने घोड़े पर बैठे हुए पण्डित जी के पैर पकड़ेः "महाराज ! आपने कहा कि ठाकुरजी की पूजा करने वाले का बेड़ा पार हो जाता है। जो ठाकुरजी की सेवा-पूजा नहीं करता वह इन्सान नहीं हैवान है। गुरु महाराज ! आप तो जा रहे हैं। मुझे ठाकुरजी की पूजा की विधि बताते जाइये।" "जैसे आये वैसे करना।" "स्वामी ! मेरे पास ठाकुरजी नहीं हैं।" "ले आना कहीं से।" "मुझे पता नहीं ठाकुरजी कहाँ होते हैं, कैसे होते हैं। आपने ही कथा सुनायी। आप ही गुरु महाराज हैं। आप ही मुझे ठाकुरजी दे दो।" पण्डित जान छुड़ाने में लगा था लेकिन धन्ना जाट अपनी श्रद्धा की दृढ़ता में अडिग रहा। आखिर उस भँगेड़ी पण्डित ने अपने झोले में से भाँग घोटने का सिलबट्टा निकालकर धन्ना को दे दियाः "ले यह ठाकुर जी। अब जा।" "पूजा कैसे करूँ गुरुदेव ! यह तो बताओ !'' गुरु महाराज ने...

|| सरस्वती वंदना ||

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|| सरस्वती वंदना || -------------------- हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ जग सिरमौर बनाएं भारत, वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे॥ हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ साहस शील हृदय में भर दे, जीवन त्याग-तपोमर कर दे, संयम सत्य स्नेह का वर दे, स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे॥1॥ हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ लव, कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम मानवता का त्रास हरें हम, सीता, सावित्री, दुर्गा मां, फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥2॥ हे हंसवाहिनी ज्ञानदायिनी अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे॥ 

⚛️ ईश्वर क्या देखता है ⚛️

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⚛️ ईश्वर क्या देखता है ⚛️ ---------------------------- शबरी के घर भगवान गए और उससे माँग-माँगकर जूठे बेर खाए, यह प्रसंग उन दिनों संतजनों में सर्वत्र चर्चा का विषय बना हुआ था। अशिक्षित नारी, साधना-विधान से अपरिचित रहने पर भी उसे इतना श्रेय क्यों मिला? हम लोग उस श्रेय-सम्मान से वंचित क्यों रहे? मतंग ऋषि ने चर्चारत भक्तजनों से कहा, "हम लोग संयम और पूजन मात्र में अपनी सद्गति के लिए किए गये प्रयासों को भक्ति मान बैठे है। जबकि भगवान् की दृष्टि में सेवा-साधना की प्रमुखता है। शबरी ही है, जो रात-रात भर जागकर आश्रम से लेकर सरोवर तक कँटीला रास्ता साफ करती रही और सज्जनों का पथ-प्रशस्त करने के लिए अपना अविज्ञात, निरहंकारी भावभरा योगदान प्रस्तुत करती रही।" भक्तजनों का समाधान हो गया, उन्होंने जाना कि भक्त और भगवान् की दृष्टि में अंतर क्या है। #awgp || जय श्री राम ||