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अप्रैल 24, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

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ऋषि शंख और लिखित दो भाई थे| दोनों धर्मशास्त्रके परम मर्मग्य थे| विद्या अध्ययन समाप्त कर के दोनों ने विवाह किया और अपने अपने आश्रम अलग अलग बना कर रहने लगे| एक बार ऋषि लिखित अपने बड़े भाई शंख के आश्रम पर उनसे मिलने गए| आश्रम पर उस समय कोई भी नहीं था| लिखित को भूख लगी थी| उन्हों ने बड़े भाई के बगीचे से एक फल तोडा और खाने लगे| वे फल पूरा खा भी नहीं सके थे, इतने में शंख आगये| लिखित ने उनको प्रणाम किया| ऋषि शंख ने छोटे भाई को सत्कार पूर्वक समीप बुलाया| उनका कुशल समाचार पूछा| इसके पश्चात् बोले-- भाई तुम यहाँ आये और मेरी अनुपस्थिति में इस बगीचे को अपना मानकर तुमने यहाँ से फल लेलिया, इस से मुझे प्रशन्नता हुई;किन्तु हम ब्राह्मणों का सर्वस्व धर्म ही है, तुम धर्म का तत्व जानते हो| यदि किसी की वस्तु उसकी अनुपस्तिथि में उसकी अनुमति के बिना ले ली जाए तो इस कर्म की क्या संज्ञा होगी? चोरी! लिखित ने बिना हिचके जवाब दिया| मुझ से प्रमादवस यह अपकर्म होगया है| अब क्या करना उचित है? शंख ने कहा! राजा से इसका दंड ले आओ| इस से इस दोष का निवारण हो जायेगा| ऋषि लिखित राजधानी गए| राजाने उनको प्रणाम कर के अर्घ्य देन...

"Hindi Baal Kathayein"

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अनमोल रत्न : यूनान के महात्मा अफलातून ने मरते समय अपने बच्चों को बुलाया और कहा - मैं तुम्हें चार-चार रत्न देकर मरना चाहता हूं। आशा है, तुम इन्हें संभालकर रखोगे एवं इन रत्नों से अपना जीवन सुखी बनाओगे। पहला रत्न मैं 'क्षमा' का देता हूं - तुम्हारे प्रति कोई कुछ भी कहे, तुम उसे विस्मृत करते रहो व कभी उसके प्रतिकार का विचार अपने मन में न लाओ। निरहंकार का दूसरा रत्न देते हुए समझाया कि अपने द्वारा किए गए उपकार को भूल जाना चाहिए। तीसरा रत्न है- विश्वास, यह बात अपने हृदयपटल पर अंकित किए रखना कि मनुष्य के बूते कभी कुछ भला-बुरा नहीं होता, जो कुछ होता है वह सृष्टि के नियंता के विधान से होता है। चौथा रत्न है, वैराग्य- यह सदैव ध्यान में रखना कि एक दिन सबको मरना है। सांसारिक संपत्ति पाकर तो लोग न जाने क्या-क्या करते हैं, लेकिन इन चार रत्नों का अनुसरण कर वे बच्चे तो मानो निहाल ही हो गए। #HindiPride Shared from "Hindi Baal Kathayein" via Android.

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प्राचीन काल बात है, दो ब्यक्ति आपस में बहुत अच्छे मित्र थे, पर दूसरे जन्म में उनमें से एक को सियार की योनि मिली और दूसरा बन्दर बना। सियार जो था, वह शमशान में रहा करता थाऔर मुर्दों का भोजन किया करता था। वहीँ एक वृक्ष था, उसपर एक बन्दर भी रहा करता था। विशेष बात यह थी कि दोनों को अपने पूर्वजन्म की साडी बातें याद थीं। एक दिन वृक्ष पर बैठे बन्दर ने सियार से जिज्ञासावश पूछा-सियार भाई! तुम पूर्वजन्म में कौन थे और तुम ने कौन सा ऐसा निंदनीय कार्य किया था, जिस से तुम्हें सियार की पशु-योनि प्राप्त हुई है और ऐसे घृणित एवं दुर्गन्धयुक्त मुर्दे से अपना पेट भरना पड़ रहा है। इसपर सियार ने दुखी होते हुए कहा- भाई वानर! क्या बताऊँ। पूर्वजन्म मैं मनुष्य-योनि में था और मैंने एक ब्रह्मण देवता को एक वस्तु देने की प्रतिज्ञा कर के फिर उन्हें वह वस्तु दी नहीं थी, इसी प्रतिज्ञा-भंग के दोष से मुझे यह दुखित पापयोनि प्राप्त हुई है। आब तो अपने कर्मका भोग भोगना ही है। मेरी तो बात हो गई, आब तुम बताओ कि तुमने कौन सा पाप किया था? इस पर वानर बोला-सियार भाई! में भी पहले मनुष्य ही था। किन्तु मेरा यह स्वभाव था कि में सदा ब्र...

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मानव-जीवन पाकर भी, भगवत्प्राप्ति का उद्देश्य समझकर भी मनुष्य दिग्भ्रमित क्यों रहता है? क्या जीवन उसे उसकी इच्छा से प्राप्त हुआ है? अमुक वंश या अमुक जाति में जन्म पाना मनुष्य के बस की बात नहीं है| फिर क्यों न मनुष्य जहाँ प्रभु की इच्छासे जीवन जीने का स्थान मिला, उसे ही अपनी कर्मभूमि समझ अपने योग्यतानुसार प्रभु कार्य में लगाकर अपना जीवन सफल करने का प्रयास करे| मनुष्य को जो कुछ भगवान ने दिया है उसके प्रति आभार ब्यक्त करने की अपेक्षा जो नहीं मिला उसे लेकर वह चिंतित तथा दु:खी रहता है| भौतिक सुख-साधनों को सर्वोपरि समझ कर परमार्थ को भूल जाता है| अपने जिम्मे आये कार्यों को करना नहीं चाहता| केवल भोग भोगना चाहता है, कितनी बड़ी मूर्खता करता है| एक किसान हल चलाता और खेत की मिटटी को नरम कर उसमें बीज डालता है| उसके पश्चात् प्राकृत या परमात्मा के अनुग्रह से फसल होती है तथा फल भी प्राप्त होता है| यदि भाग्य में नहीं होता तो वर्षा न होने या कम होने से लाभसे वंचित भी रह जाता है| मगर यदि मेहनत नहीं करेगा, बीज नहीं बोएगा तो कितनी ही अच्छी वर्षा से फल लाभ दायक नहीं हो सकता | ईश्वर की सहायता भी तभी फली भूत ह...

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एक आदमी की 8 साल की इकलोती और लाडली बेटी बीमार पड़ गयी. बहुत कोशिश के बाद भी वो नहीं बच पाई. पिता गहरे शोक में डूब गया और खुद को दुनिया और दोस्तों से दूर कर लिया. एक रात उसे सपना आया की वो स्वर्ग में था जहाँ नन्ही परियो का जुलुस जा रहा था. वो सब जलती मोमबत्ती को हाथ में लिए सफ़ेद पोशाक में थी. उनमे से एक लड़की की मोमबत्ती बुझी हुई थी. व्यक्ति ने पास जाकर देखा तो वो उसकी बेटी थी. उसने अपनी बेटी को दुलारा और पूछा की 'बेटी तुम्हारी मोमबत्ती में रौशनी क्यों नहीं हैं?' लड़की बोली की 'पापा ये लोग कई बार मेरी मोमबत्ती जलाते हैं लेकिन आपके आंसुओ से हर बार बुझ जाती हैं." एकदम से उस आदमी की नीदं खुली और उसे सपने का मतलब समझ आ गया. तब से उसने दोस्तों से मिलना खुश रहना शुरू कर दिया ताकि उसके आंसुओ से उसकी बेटी की मोमबत्ती न बुझे. "कई बार हमारे आंसू और दुःख, हमारे न चाहते हुए भी अपनों को दुःख देते हैं. और वे भी दुखी हो जाते हैं."

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किसी गांव में एक गरीब ब्राहमण रहता था| वह लोगों के घरों में पूजा पाठ कर के अपनी जीविका चलाता था| एक दिन एक राजा ने इस ब्राहमण को पूजा के लिए बुलवाया| ब्राहमण ख़ुशी ख़ुशी राजा के यहाँ चला गया | पूजा पाठ करके जब ब्राहमण अपने घर को आने लगा तो राजा ने ब्राहमण से पूछा इश्वर कहाँ रहता है, किधर देखता है और क्या करता है? ब्राहमण कुछ सोचने लग गया और फिर राजा से कहा, महाराज मुझे कुछ समय चाहिए इस सवाल का उत्तर देने के लिए| राजा ने कहा ठीक है, एक महीने का समय दिया| एक महीने बाद आकर इस सवाल का उत्तर दे जाना | ब्राहमण इसका उत्तर सोचता रहा और घर की ओर चलता रहा परन्तु उसके कुछ समझ नहीं आरहा था| समय बीतने के साथ साथ ब्राहमण की चिंता भी बढ़ने लगी और ब्राहमण उदास रहने लगा| ब्रह्मण का एक बेटा था जो काफी होशियार था उसने अपने पिता से उदासी का कारण पूछा | ब्राहमण ने बेटे को बताया कि राजा ने उस से एक सवाल का जवाब माँगा है कि इश्वर कहाँ रहता है;किधर देखता है,ओर क्या करता है ? मुझे कुछ सूझ नहीं रहा है| बेटे ने कहा पिताजी आप मुझे राजा के पास ले चलना उनके सवालों का जवाब मै दूंगा| ठीक एक महीने बाद ब्राह्मण अपने बे...