👉 *"मर्द"..आज के..*
*आज हमेंशा की तरह ट्रेन में कम भीड़ थी,पुष्पा ने खाली जगह पर अपना ऑफिस बैग रखा और खुद बगल में बैठ गई। पूरे डिब्बे में कुछ मर्दों के अलावा सिर्फ पुष्पा ही थी। रात का समय था सब उनींदे से सीट पर टेक लगाये या तो बतिया रहे थे या ऊंघ रहे थे। * अचानक डिब्बे में 3-4 तृतीय लिंगी तालियां बजाते हुए पहुंचे और मर्दों से 5-10 रूपये वसूलने लगे कुछ ने चुपचाप दे दिए और कुछ उनींदे से बड़बड़ाने लगे- क्या मौसी रात को तो छोड़ दिया करो ये हफ्ता वसूली... वह सभी पुष्पा की तरफ रुख न करते हुए सीधा आगे बढ़ गए, फिर ट्रेन कुछ देर रुकी और कुछ लड़के चढ़े, फिर दौड़ ली आगे की ओर। *पुष्पा की मंजिल अभी 1 घंटे के फासले पर थी वे 4-5 लड़के पुष्पा के नजदीक खड़े हो गए और उनमे से एक ने नीचे से उपर तक पुष्पा को ललचाई नजरो से देखा और बोला -मैडम अपना ये बैग तो उठा लो सीट बैठने के लिए है, सामान रखने के लिए नहीं।* साथी लड़कों ने वीभत्स हंसी से उसका साथ दिया, पुष्पा ने अपना बैग उठाया और सीट पर सिमट कर बैठ गई। वे सारे लड़के पुष्पा के बगल में आकर बैठ गए। *पुष्पा ने कातर नजरों से सामने बैठे 2-3 पुरुषों की ओर देखा पर वे ऐसा जाहिर करने लगे मानो ...