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👉 *आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक

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👉 *आसन, प्राणायाम, बंध एवं मुद्राओं से उपचार* *प्राणायाम के अलावा बन्ध हठयोग की अन्य महत्त्वपूर्ण विधि है। इसे अन्तः शारीरिक प्रक्रिया कहा गया है।* इनके अभ्यास से व्यक्ति शरीर के विभिन्न अंगों तथा नाड़ियों को नियंत्रित करने में समर्थ होता है। इनके द्वारा शरीर के आन्तरिक अंगों की मालिश होती है। रक्त का जमाव दूर होता है। *इन शारीरिक प्रभावों के साथ बन्ध सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त विचारों एवं आत्मिक तरंगों को प्रभावित कर चक्रों पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं।* यहाँ तक कि यदि इन का अभ्यास विधिपूर्वक जारी रखा जाय तो *सुषुम्रा नाड़ी में प्राण के स्वतन्त्र प्रवाह में अवरोध उत्पन्न करने वाली ब्रह्मग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि व रुद्रग्रन्थि खुल जाती है और आध्यात्मिक विकास का पथ प्रशस्त होता है।*  *हठयोग की एक अन्य विधि के रूप में मुद्राएँ सूक्ष्म प्राण को प्रेरित, प्रभावित व नियंत्रित करने वाली प्रक्रियाएँ हैं।* इनमें से कई मुद्राएँ तो ऐसी हैं जिनके द्वारा अनैच्छिक शरीरगत प्रक्रियाओं पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। *मुद्राओं का अभ्यास साधक को सूक्ष्म शरीर स्थित प्राण- शक्ति की तरंगों के प्रति जागरूक...

Motivational Story...

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👉 *मूर्ख कौन?* *ज्ञानचंद नामक एक जिज्ञासु भक्त था। वह सदैव प्रभुभक्ति में लीन रहता था। रोज सुबह उठकर पूजा- पाठ, ध्यान-भजन करने का उसका नियम था। उसके बाद वह दुकान में काम करने  जाता। दोपहर के भोजन के समय वह दुकान बंद कर देता और फिर दुकान नहीं खोलता था।* बाकी के समय में वह साधु- संतों को भोजन करवाता, गरीबों की सेवा करता, साधु- संग एवं दान-पुण्य करता। व्यापार में जो भी मिलता उसी में संतोष रखकर प्रभुप्रीति के लिए जीवन बिताता था।  *उसके ऐसे व्यवहार से लोगों को आश्चर्य होता और लोग उसे पागल समझते। लोग कहतेः  "यह तो महामूर्ख है। कमाये हुए सभी पैसों को दान में लुटा देता है। फिर दुकान भी थोड़ी देर के लिए ही खोलता है। सुबह का कमाई करने का समय भी पूजा- पाठ में गँवा देता है। यह तो पागल ही है।"* एक बार गाँव के नगरसेठ ने उसे अपने पास बुलाया। उसने एक लाल टोपी बनायी थी। *नगरसेठ ने वह टोपी ज्ञानचंद को देते हुए कहाः  "यह टोपी मूर्खों के लिए है। तेरे जैसा महान् मूर्ख मैंने अभी तक नहीं देखा, इसलिए यह टोपी तुझे पहनने के लिए देता हूँ।* इसके बाद यदि कोई तेरे से भी ज्यादा बड़ा मूर्ख दिखे तो तू ...

👉 *अंडा खाइये और लकवा बुलाइये*

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👉 *अंडा खाइये और लकवा बुलाइये* *इधर मूर्ख नेताओं वाले देश भारतवर्ष में तृतीय पंचवर्षीय योजना देश भर में मुर्गी पालन और अण्डा उत्पादन का अभियान चला रही थी उधर फ्लोरिडा अमेरिका का कृषि विभाग 'अण्डों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है' उसकी शोध और परीक्षण कर रहा है। अट्ठारह महीनों के परीक्षण के बाद 1967 की हेल्थ बुलेटिन ने बताया- अण्डों में डी.डी.टी. विष पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक हानिकारक है।* कैलीफोर्निया के विश्व विख्यात डॉ. कैथेराइन निम्मो डी.सी.आर.एन. तथा डॉ. जे. एमन विल्किन्ज ने एक सम्मिलित रिपोर्ट में बताया- *एक अण्डे में लगभग 4 ग्रेन 'केले स्टरोल' नामक अत्यन्त विषैला तत्व पाया जाता है। यह विष हृदय रोगों का मुख्य कारण है।* इतनी सी मात्रा से ही हाई ब्लडप्रेशर, पित्ताशय में पथरी, गुर्दों की बीमारी तथा रक्त में जाने वाली धमनियों में घाव हो जाते हैं 'इस स्थिति में अण्डों से स्वास्थ्य की बात सोचना मूर्खता ही है।' इन डाक्टरों की यह रिपोर्ट पढ़कर विश्वभर के डॉक्टर चौंके और तब सारे संसार की प्रयोगशालाओं में परीक्षण होने लगे। उन परीक्षणों में न केवल...