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आधी रोटी का कर्ज...

सुलेखा बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा रही थी और गोपाल बार बार उसको अपनी हद में रहने की कह रहा था लेकिन सुलेखा थी की चुप होने का नाम ही नही ले रही थी जोर जोर से चीख चीखकर कह रही थी कि
"उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।।
बात जब गोपाल की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो उसने सुलेखा के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे मारा अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी गोपाल और सुलेखा की।
सुलेखा से गोपाल का तमाचा सहन नही हुआ वह घर छोड़कर जाने लगी गोपाल ने उसे बहुत समझाया लेकिन वह ना मानी लेकिन उसने जाते जाते गोपाल से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर इतना विश्वास क्यूं है..??
तब गोपाल ने जो जवाब सुलेखा को दिया उस जवाब को सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो उसका मन भर आया गोपाल ने सुलेखा को बताया कि
"जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना आता था मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है बेटा तू खा ले मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था कि मां मेरा पेट भर गया है मुझे और नही खाना है मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे पाला पोसा और बड़ा किया है आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया हूं लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं
कि मां ने उम्र के उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी की भूखी होगी यह मैं सोच भी नही सकता तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस वर्षों से देखा है..
यह सुनकर मां की आंखों से छलक उठे वह समझ नही पा रही थी कि गोपाल उसकी आधी रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह गोपाल की आधी रोटी का कर्ज..

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